"कविता से अधिक पढ़ी जाने वाली विधा है लघुकथा !: सिद्धेश्वर
" देखन में छोटी लगे पर घाव करे गंभीर ! " : डॉ शरद नारायण खरे
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"लघुकथा सृजन एक साधना है !!: डॉ मधुबाला सिन्हा
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पटना !21/03/2022 ! " कम समय में हम अधिक से अधिक सारगर्भित और ज्ञानवर्धक बातें जानने के लिए बेचैन रहते हैं l अधिकांश पाठकों के पास इतना समय नहीं है कि वे बड़ी-बड़ी और लंबी लंबी कहानियां और उपन्यास पढ़ सकें l ऐसे में, कम समय में अधिक सारगर्भित और महत्वपूर्ण बातें, अपनी पूरी मारक क्षमता के साथ लघुकथा ही प्रस्तुत कर सकती है l शायद इसलिए कविता से भी अधिक पढ़ी जाने वाली विधा के रूप में लघुकथा स्थापित हो चुकी है l और सच पूछिए तो स्तरीय रचनाओं की भीड़ में, अधिकाधिक संख्या लघुकथाओं की है । सन 1875 यानि भारतेंदु युग से आरम्भ लघुकथा आज हिंदी साहित्य जगत में विधागत स्थान बना चुकी है l"
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में " गूगल मीट " और फेसबुक के " अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका " के पेज पर एक साथ ऑनलाइन आयोजित," हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन "में लघुकथा की उपयोगिता " विषय पर चर्चा करते हुए उपरोक्त उद्गार, संयोजक सिद्धेश्वर ने व्यक्त किया l "
लघुकथा सम्मेलन के मुख्य अतिथि डॉ शरद
नारायण खरे (म. प्र. ) ने कहा कि -" लघुकथा का मतलब देखन में छोटी लगे,पर घाव करे गंभीर ! लघुकथा की उपयोगिता दिन-प्रतिदिन बहुगुणित होती जा रही है।व्यस्त समय में यदि छोटी रचना बड़ी बात कहने में सक्षम होगी,तो उसका महत्व बढ़ेगा ही। लघुकथा अपने कथ्य,शिल्प,प्रवाह के कारण भी अधिक उपयोगी बनती जा रही है। "
अपनी अध्यक्षीय भूमिका में डॉ. मधुबाला सिन्हा ( चंपारण ) ने कहा कि - " लघुकथा लिखना एक साधना है जिसमें साधक और पाठक एकाकार हो जाते हैं l एक सार्थक प्रश्नचिन्ह समाज के सामने खड़ा कर, समाज के हृदय को झकझोर देने वाली लघुकथा ही सार्थक होती है।" जबकि मुख्य वक्ता अपूर्व कुमार ( वैशाली ) ने कहा कि -" कम शब्दों में अत्यधिक एवं त्वरित संप्रेषण क्षमता होने के कारण साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा लघुकथा का महत्व अधिक हो जाता है । लघुकथाकार को संक्षेपण की कला में निष्णात होना उसे एक सफल लघुकथाकार बना सकता है। ".डी एन मिश्रा के अनुसार -" हम लघु कथाओं की प्रासंगिकता को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं । " शशि दीपक कपूर (मुंबई )ने कहा कि -" लघुकथा लेखन में भाषा व शैली की विविधता होना भी अनिवार्य है। "
अंतरराष्ट्रीय रचनाकार मंच के अध्यक्ष सुरेश चौधरी (कोलकाता) ने कहा कि - लघुकथा का इस तरह ऑनलाइन आयोजन एवं पाठशाला चलाना, सिद्धेश्वर की लघुकथा के प्रति समर्पण और अथाह परिश्रम को दर्शाता है l उन्होंने ठीक कहा है कि - संपादकों को भी चाहिये कि लघु कहानी को लघुकथा के रूप में न परोसे l " पथिक रचना ( नैनीताल ) ने कहा कि ऐसे आयोजन से हमें कुछ नया सृजन करने की प्रेरणा मिलती है l विजेंद्र जेमिनी ने कहा कि - सिद्धेश्वर जी के द्वारा लघुकथा की पाठशाला चलाना बहुत अच्छा प्रयास है l इस तरह की कविता पाठशाला भी चलनी चाहिए l
लघुकथा सम्मेलन में ऋचा वर्मा ने - जहां सास ननद, वहाँ आनंद आनंद !!/ निहाल चंद शिवहरे ( झांसी ) ने - प्रश्न चिन्ह / नीलम नारंग ( मोहाली ) ने- कैसी आजादी / मधुरेश नारायण ने - " अपाहिज/ सुधाकर मिश्र सरस ( इंदौर ) ने - बोलता खून / सिद्धेश्वर ने - जिंदा गोश्त / मीना कुमारी परिहार ने- आजाद हूं / शशि दीपक कपूर ( मुंबई ) ने - सक्षम / डॉ मधुबाला सिन्हा ( चंपारण ) ने - घोंसला / राज प्रिया रानी ने - पूजा / संध्या तिवारी ( पीलीभीत ) ने - हक / मीना भट्ट (जबलपुर )ने - आत्मीयत शीर्षक लघुकथाओं का पाठ किया l
इसके अतिरिक्त कवि नरेश अग्रवाल, आराधना प्रसाद दुर्गेश मोहन, संतोष मालवीय, ज्योत्सना सक्सेना, बृजेंद्र मिश्रा, खुशबू मिश्र, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय, अनिरुद्ध झा दिवाकर, बीना गुप्ता, स्वास्तिका, अभिषेक आदि की भी भागीदारी रही।
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( प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव ) / एवं सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष ) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
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