अंतरराष्ट्रीय फलक पर उतरने में पूर्णतः सक्षम है- डॉ. योगेंद्रनाथ शुक्ल की लघुकथाएं: सिद्धेश्वर
लघुकथा के प्रति गंभीर रचनाकारों ने विश्व के मानचित्र पर लघुकथा को पहुंचाया है।": डॉ योगेंद्रनाथ शुक्ल
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पटना :- हिंदी साहित्य में सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली विधा के रूप में लघुकथा ने जो मुकाम हासिल किया है, उसने समकालीन लघुकथाकारों को हाशिये से बाहर लाकर मुख्यधारा के लेखकों की श्रेणी में ला खड़ा किया है । डॉ योगेंद्रनाथ शुक्ल की लघुकथा कृति " लघुकथाओं का पिटारा " मेरे हाथ में है, जो हमें समकालीन लघुकथा के प्रति आश्वस्त ही नहीं करती, बल्कि उनकी लघुकथाओं को पढ़ते हुए लघुकथा के टटकापन और तल्खीपन का एहसास भी होता हैl एक तृप्ति मिलती है, क्योंकि उनके इस संग्रह में संकलित अधिकांश लघुकथाएं पाठकों को साहित्यिक कथा का आस्वाद तो दे ही जाती है, लघुकथा का अंत होते-होते पाठकों को बहुत कुछ सोचने को बाध्य भी कर देती हैं ।
p> ... भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के " अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका " के पेज पर ऑनलाइन हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन में लब्ध प्रतिष्ठित लघुकथाकार डॉ.योगेंद्रनाथ शुक्ल की नवीनतम कृति " लघुकथाओं का पिटारा " की समीक्षा करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया ! उन्होंने कहा कि डॉ योगेंद्र नाथ शुक्ल की यह लघुकथा कृति तमाशबीन बने व्यक्ति और समाज को एक नई दिशा देगी l इस लघुकथा कृति के माध्यम से डॉ योगेंद्रनाथ शुक्ल अंतरराष्ट्रीय स्तर के लघुकथाकार दिख पड़ते हैं l योगेंद्र नाथ शुक्ल की दृष्टि पैनी, लेखनी सशक्त और भाषा संयत है,इसलिए हर लघुकथा अनूठी बन पड़ी है ।"डॉ योगेंद्र नाथ शुक्ल, अपनी इन लघुकथाओं के माध्यम से, कहीं राजनीतिक कदाचार से मोहभंग दिख पड़ते हैं, तो कहीं परिवारिक विघटन से व्यथित l कहीं अपनी नैतिक मूल्यों के प्रति गंभीर दिख पड़ते हैं, तो कहीं सरकारी कामकाज के प्रति चौकस ! यानी समाज, व्यक्ति, समाज और देश के हर नब्ज को टटोलने में डॉ योगेंद्र नाथ शुक्ल की लघुकथाएं सक्षम है, यह लघुकथा साहित्य के लिए संतोष की बात है ! इस तरह के जीवंत लघुकथाकारों के कारण ही, आज हिंदी साहित्य में लघुकथा पढ़ने वाले पाठकों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है, और विषय की ताजगी के कारण तथा मौलिक चिंतन होने के कारण, इस तरह की लघुकथाएं अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाती है"!
मुख्य अतिथि डॉ योगेंद्रनाथ शुक्ल ने कार्यक्रम की शुरुआत में कहा कि - दुनिया के प्रत्येक साहित्य में कम शब्दों में कहीं जाने वाली, गहराई वाले अर्थ को रखने वाली रचना को उत्तम माना जाता है। तात्पर्य यह है कि लघुकथा का फलक भले ही छोटा हो किंतु उसके भीतर ,वह बड़ा फलक छुपाए रखती है।इस दौर में जैसे आज हमारे पास समय नहीं है, वही स्थिति विदेशों में भी है, इसी कारण वहां भी लघुकथा, साहित्य से आमजन को जोड़ कर ,एक बहुत बड़ी जरूरत को पूरा कर रही है। विदेशों में भी वह लोकप्रियता के नए-नए पायदान छू रही है। जिस तरह अनुवाद के माध्यम से हिंदी साहित्य में कहानी और उपन्यास सामने आए ,बस उसी तरह लघुकथा ने भी अनुवाद के माध्यम से हमारे साहित्य में प्रवेश किया। सन उन्नीस सौ के आसपास विश्व प्रसिद्ध लेखक खलील जिब्रान की अरबी लघुकथाओं का अनुवाद हिंदी में प्रकाशित हुआ, तभी लघुकथा का विधिवत स्वरूप उभरकर हमारे समक्ष आया। बोनसाई हो या बोना आदमी ,वह पेड़ और आदमी के रूप में परिपूर्ण होता है ,बस वैसी ही लघुकथा है। वह कहानी की तरह तृप्ति देती है। भले ही लघुकथा एक क्षण की प्रस्तुति है, किंतु जीवन का जो क्षण लघुकथा में उभरता है, जिस रुप में वो पाठक के समक्ष आता है ,वैसा कहानी और उपन्यास में नहीं उभर पाता । यही विशिष्ट गुण ,उसे लघुकथा बना देता है।
अरबी, फारसी ,अंग्रेजी जर्मन, रूसी, स्पेनिश ,जापानी, चीनी आदि भाषाओं में लघुकथाएं लिखी जा रही हैं। उनके अनुवाद हो रहे हैं। खलील जिब्रान ,शेख सादी, लूसुन, सआदत हसन मंटो, जोगिंदर पाल ,ओ .हेनरी, चेखव जैसे अनेक ख्यातनाम लेखकों के नाम सहज जबान पर आ जाते हैं ! सच पूछिए तो लघुकथा के प्रति गंभीर रचनाकारों ने विश्व के मानचित्र पर लघुकथा को पहुंचाया है।"
लघुकथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ लघुकथा लेखिका नरेंद्र कौर छाबड़ा ने कहा कि - " लघुकथा को खेमों और गुटबाजी से बाहर निकालना होगा ! लघुकथा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण ही लघुकथा को अंतरराष्ट्रीय फलक पर उजागर कर सकेगा और आम पाठकों के करीब ला सकेगा l लगातार दो वर्षों तक " हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन " के माध्यम से संयोजक सिद्धेश्वर जी ने पूरे देश भर में अलख जगाए रखा है और इनके ऑनलाइन से जुड़े कई कथाकार और कवि लघुकथा लिखने में प्रवीण होते चले गए हैं, आज के सम्मेलन में पढ़ी गई लघुकथाओं को पढ़कर यह एहसास हुआ ! ऐसे सार्थक आयोजन करने के लिए मैं संयोजक सिद्धेश्वर जी को हार्दिक बधाई देना चाहूंगी l"
राज प्रिया रानी ने कहा कि- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लघुकथा की प्रासंगिकता प्रभावशाली विधा के रूप में उभरती जा रही है l आज की लघुकथा व्यक्ति, समाज से निकलकर पूरे विश्व पाठक समुदाय में लोकप्रिय और प्रासंगिक हो रहा हैl इस ऑनलाइन लघुकथा सम्मेलन में देश-विदेश के लघुकथाकारों की लघुकथाएं प्रस्तुत की गई l राष्ट्र, समाज, व्यक्ति से निकलकर पूरे विश्व पाठक समुदाय में लघुकथा की प्रासंगिकता यथार्थता उच्च स्तरीय और लोकप्रिय संप्रेषण के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है। जो साहित्य जगत के लिए अमूल्य योगदान है।आधुनिक लघुकथा का लक्ष्य बहुआयामी है। तुलनात्मक दृष्टि से अवलोकन करें तो हास्य से थोड़ी दूरी बनाकर चलती है। वहीं व्यंग्य के प्रति इसका संबंध घनिष्ठ होता है। क्योंकि आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विसंगति प्रधान समाज के लिए यह करारा प्रहार करने में सक्षम होती है।"
. इस ऑनलाइन लघुकथा सम्मेलन में डॉ योगेंद्रनाथ शुक्ल ने - " प्रेमचंद का सच "/ भगवती प्रसाद द्विवेदी ने -" भविष्य का वर्तमान "/ सिद्धेश्वर ने - " क्षतिपूर्ति "/ मधुरेश नारायण ने -आग्रह "/ रूबी भूषण ने -"गिद्ध "/ राज प्रिया रानी ने-" विरोध प्रदर्शन " / मीना कुमारी परिहार ने -" भाग्य खुलना !"/ रामनारायण यादव (सुपौल )-" पेंशन की टेंशन !/ ऋचा वर्मा ने - पापा आप सही हैं !"/ विजयानंद विजय (बोधगया ) ने -" बेटी "/ नरेंद्र कौर छाबड़ा(महाराष्ट्र) ने - " रोटी के सपने " / निहाल चंद्र शिवहरे (झाँसी ) ने - "अपना तेरा "/ पूनम कतरियार ने - " हाथी -दाँत/ डॉ मधुबाला सिन्हा (मोतिहारी ) ने - " घुटती चींखें " / सपना चंद्रा (भागलपुर ) ने " दर्पण "/ रशीद गौरी (सोजत सिटी ) ने " पूजा "/ पुष्प रंजन (अररिया )ने -" बीज मंत्र "/ रूबी भूषण ने -"गिद्ध " लघुकथाओं को प्रस्तुत किया ! इसके अतिरिक्त विक्रम सोनी की "अज़गर "/ फ्लाबेयर की फ्रांसीसी लघुकथा " गहराई "/ बर्तोल्त ब्रेख्त की जर्मन लघुकथा " मौलिकता "/हेमिंग्वे की अमरीकी लघुकथा " क्रांतिकारी " का भी पाठ सिद्धेश्वर ने किया l " हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन " में विशेष आकर्षण का विषय रहा, बेगुसराय के फिल्म निर्माता, निर्देशक, अभिनेता अनिल पतंग द्वारा प्रस्तुत की गई तारावती सैनी और शील कौशिक की लघुकथा "बिजूका ",और "खबर " पर बनी लघु फिल्म, जिसे ढेर सारे दर्शकों ने पसंद किया !
इनके अतिरिक्त दुर्गेश मोहन, कौशलेंद्र पांडेय, संतोष मालवीय, संतोष गर्ग, सुधा पांडे, श्रीकांत गुप्ता, शशि भूषण भदोही, संजय राय, सोहेल नरेश सक्सेना, बृजेंद्र मिश्रा, खुशबू मिश्र, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय, अनिरुद्ध झा दिवाकर, बीना गुप्ता, स्वास्तिका, सत्यम, अभिषेक आदि की भी भागीदारी रही।
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======( प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव ) / भारतीय युवा साहित्यकार परिषद)
साहित्य आजकल द्वारा आयोजित "हम में है दम" कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी है। ज्ञात हो कि इस प्रतियोगिता कार्यक्रम में भाग लिए सभी रचनाकारों में जो विजयी होंगे उन्हें नगद पुरस्कार स्वरूप 101 रुपया, शील्ड कप और सम्मान पत्र उनके आवास पर भेज कर सम्मानित किया जाना है। यदि आप भी भाग लेना चाहते हैं तो टीम से सम्पर्क करें।
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