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11/20/22

कोई सूखे पत्तों पे बेआवाज़ चलता है.(कविता)- सुरेश बंजारा

 ग्राम-व्यथा

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शाम

ढ़लती शाम

चल छोड़ खेत-काम

धीरे-धीरे गहराते नीम के अंधेरे में

कोई सूखे पत्तों पे बेआवाज़ चलता है.

दूर दीया-सा जलता है!


जाग

जल्दी जाग

चल यहां से भाग

आधी रात गांव की सुनसान गली में

परधान का प्रेत घूमने निकलता है.

दूर दीया-सा जलता है!


बेटी

तीसरी बेटी 

चल चिता पर लेटी

बाप दहेज न जुटाने के अपराध में

बारी-बारी सबका क़फ़न सिलता है.

दूर दीया -सा जलता है!


हंस

तनिक हंस

चल सभी हैं बेबस

बिन दवा जोरु तड़प रही जच्चाने में

होरी बैठा खाली हाथ तंबाकू मलता है.

दूर दीया-सा जलता है!


अम्मा

बूढ़ी अम्मा

चल मर चुकी आत्मा

ये आंगन अब हुआ पराया बंटवारे में

समय देख बेटों का ख़ून बदलता है.

दूर दीया-सा जलता है!


    ---  सुरेश बंजारा.

            (गोंदिया, महाराष्ट्र)

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