ग्राम-व्यथा
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शाम
ढ़लती शाम
चल छोड़ खेत-काम
धीरे-धीरे गहराते नीम के अंधेरे में
कोई सूखे पत्तों पे बेआवाज़ चलता है.
दूर दीया-सा जलता है!
जाग
जल्दी जाग
चल यहां से भाग
आधी रात गांव की सुनसान गली में
परधान का प्रेत घूमने निकलता है.
दूर दीया-सा जलता है!
बेटी
तीसरी बेटी
चल चिता पर लेटी
बाप दहेज न जुटाने के अपराध में
बारी-बारी सबका क़फ़न सिलता है.
दूर दीया -सा जलता है!
हंस
तनिक हंस
चल सभी हैं बेबस
बिन दवा जोरु तड़प रही जच्चाने में
होरी बैठा खाली हाथ तंबाकू मलता है.
दूर दीया-सा जलता है!
अम्मा
बूढ़ी अम्मा
चल मर चुकी आत्मा
ये आंगन अब हुआ पराया बंटवारे में
समय देख बेटों का ख़ून बदलता है.
दूर दीया-सा जलता है!
--- सुरेश बंजारा.
(गोंदिया, महाराष्ट्र)
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