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5/15/23

मध्यमवर्ग की समस्याओं से जूझने वाले समर्थ कथाकार है जयंत ! : सिद्धेश्वर

मध्यमवर्ग की समस्याओं से जूझने वाले समर्थ कथाकार है जयंत !   : सिद्धेश्वर

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 समकालीन कथाकारों की कहानियों में सामाजिक परिदृश्य बखूबी उभरता है l":  निशा भास्कर

         पटना  l प्रतिष्ठित कथाकार जयंत का ओपन उपन्यास " और वह लौट गया !" हमारे समाज के मध्यम वर्ग की व्यथा कथा है l इसलिए कहा जा सकता है कि  मध्यमवर्ग की समस्याओं से जूझने वाले समर्थ कथाकार है जयंत  l जयंत ने कहानियां अधिक लिखी है और उपन्यास बहुत कम l उनका यह नवीन उपन्यास मध्यमवर्ग  की व्यथा और संघर्ष की कथा को बखूबी बयां कर जाती है l

             भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में गूगल मीट के माध्यम से फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन का संचालन करते हुए संस्थापक अध्यक्ष एवं  संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l

                             कथाकार जयंत के उपन्यास पर समीक्षात्मक टिप्पणी अपनी डायरी में प्रस्तुत करते हुए सिद्धेश्वर ने विस्तार से कहा किभारी-भरकम शब्दावली का उपयोग करने वाले, और क्लिस्ट शब्दों का प्रयोग करते हुए   जानबूझकर कलात्मक अभिव्यक्ति दिलाने  वाले रचनाकारों की रचनाएं मुझे कतई नहीं पसंद आती l और मैंने कहा ना कि मैं जबरन किसी भी रचना को पढ़ता नहीं बल्कि रचना मुझे पढ़वाती है l जयंत का यह नवीन उपन्यास आखिर वह चला गया ने भी मुझे पढ़वाया है l आज के पाठक सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं पढ़ना चाहते हैं, रचनाओं में अपनी छवि देखना चाहते हैं, वह भी इस कदर जब वह रचना उन्हें भीतर तक झकझोर दे l वरना 5 से 10 पन्ना पढ़ने के लिए भी उन्हें बहुत आत्म बल जुतानी पड़ती है l अब ऐसी स्थिति में आप कल्पना कीजिए कि वह लेखक बेचारा क्या करें जो सालों भर श्रम साध्य काम करते हुए, लंबी कहानियों का संकलन या उपन्यास तैयार कर, हजारों रुपए दाव में लगा दिए हो l जयंत जी का उपन्यास " आखिर वह चला गया "  जरूर प्रभावपूर्ण है, और भाषा भी सरल है  l

 किंतु आज जब किसी के पास समय नहीं, एक सार्थक सृजन को पढ़ने के लिए, यह सवाल उठता है कि जो लेखक लगातार छोटी-छोटी कहानियां और लघुकथाएं लिख रहा हो, उसे अचानक 192 पृष्ठों के उपन्यास लिखने की जरूरत क्यों आन पड़ी? क्या ये सारी बातें छोटी छोटी कहानियों में या लघुकथाओं में नहीं कही जा सकती थी ? और जब कहीं जा सकती थी तो फिर ऐसे समय में जब छोटी-छोटी रचनाओं के प्रति पाठक आकर्षित रहते हैं ,  लेखक को कैसी मजबूरी आन पड़ी? यह मेरा व्यक्तिगत सवाल हो सकता है, एक लेखक के नाते भी एक समीक्षा के नाते भी l

         मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार वरिष्ठ कथाकार जयंत ने कहा कि आज के इस कथा में करीब ग्यारह कहानियां मैंने सुनी। वर्तमान में ऐसे गोष्ठियों की उपयोगिता महत्वपूर्ण है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि लिखने वाले का महत्व तभी है सामने सुनने और पढ़ने वाला भी हो। निश्चय ही इस कार्य के लिए मंच की आवश्यकता है और सिद्धेश्वर के संयोजन में  " अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका "  के आभासी मंच का इसमें अतुलनीय योगदान हैl

               पूरे कथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए नई दिल्ली की वरिष्ठ कथा लेखिका निशा भास्कर ने कहा कि  " ‌‌ कथा सम्मेलन का आरंभ कथाकार  जयंत जी द्वारा अपने उपन्यास का अंश अत्यंत प्रभावकारी रहा l उपन्यास का बड़ा ही सूक्ष्म निरूपण कर सिद्धेश्वर ने कहा -"कोई भी कहानी पढ़ी नहीं जाती, कहानी खुद को पढ़वाती है।"इस पुस्तक में ऐसे कई सामाजिक तथ्य छुपे हैं जो पाठकों को आकर्षित करेंगी। तत्पश्चात जयंत जी ने इस उपन्यास से एक अंश का वाचन कर मंच पर उपस्थित श्रोताओं को अपने विचार से अवगत कराया।  दूसरा सत्र कहानी वाचन का था। जिसमें पूरे भारतवर्ष के कथाकारों ने सहभागिता निभाई । श्रोताओं से समृद्ध मंच पर कुल 11 कहानियों का वाचन किया गया । सर्वप्रथम निशा भास्कर, नई दिल्ली ने "पश्चाताप" कहानी का वाचन किया। इस कहानी में आज के युवा पीढ़ी के जीवन में सामंजस्य बिठाने की खातिर निरंतर आपाधापी और तनावपूर्ण जीवन को लक्षित किया गया है।राज प्रिया रानी की कहानी " वायरल लड़की " अत्यंत ज्वलंत मुद्दे पर था। सामाजिक कई विसंगतियों को समेटे हुए । सपना चंद्रा जी की कहानी "रेशमी रिश्ते" वाकई काफी कोमल भावनाओं को संजोए हुई थी। माधवी जैन जी की कहानी "इंतजार" तीन पीढ़ियों का परिदृश्य चलचित्र की भांति आंखों के समक्ष लाकर खड़ी कर दी। जिसमें एक सहज सरल स्त्री अपने मनोभावों को पुरुष प्रधान समाज में सहजता से रखने में हर बार रह जाती है । नलिनी श्रीवास्तव जी की कहानी "प्रेम का नया रंग " एक मर्मस्पर्शी जीवंतता से परिपूर्ण रुहानियत का अंदेशा देती हुई रचना है। विजय कुमारी मौर्य जी की कहानी "घर से बेघर" एक बुजुर्ग की मन: स्थिति बताती हुई  मनोवैज्ञानिक रचना है । प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र की व्यंग्य  कहानी "बुढ़ापा की चाह" एक अतैव सुंदर हास्यास्पद रचना है। कई जगह मन को गुदगुदाने वाले संवाद कहानी को जीवंतता प्रदान करती है। रजनी श्रीवास्तव अनंता  ने "बेदर्द दर्द" कहानी का वाचन किया । इस कहानी में दैनिक जीवन में घटित होने वाली छोटी बड़ी बातों को दर्द के रूप में बयान किया गया है। डॉ मीना कुमारी परिहार्य जी की कहानी "मनगढ़ंत बातें" जीवन के उन विरोधाभास की ओर इशारा करती  हैं जो यथार्थ से बिल्कुल विलग होकर मनगढ़ंत बातों को सच मान कर चलती है। इस कहानी का विकास इसी पर निर्भर करता है । डॉ चंद्रिका व्यास जी की कहानी "रॉन्ग नंबर" मन मस्तिष्क को झिंझोड़ने वाली है। दोस्तों की संगत में पड़कर व्यक्ति किस तरह अपना पारिवारिक जीवन तहस-नहस कर लेता है, इसका जीवंत चित्रण है। अंत में गार्गी जी ने अपनी कहानी "जीवंत तस्वीरें" के साथ मंच पर एक नई सामाजिक परिदृश्य को सामने रखा।  इस तरह आज का यह कार्यक्रम बहुत ही बेहतरीन और सफल रहा। मंच की अध्यक्षता करते हुए निशा भास्कर ने सभी कहानियों पर अपनी संक्षिप्त और सूक्ष्म टिप्पणी देती रही। ऐसे सशक्त संचालन के लिए उन्होंने  कहा कि - हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन के इस वर्चुवल मंच पर  मैं सिद्धेश्वर जी का साधुवाद करती हूं l

        इन कथाकारों के अतिरिक्त कहानी एवं कथा सृजन पर अपनी बेबाक टिप्पणी प्रस्तुत करने वाले में प्रमुख है निर्मल कुमार डे,सुहेल फारुकी,सुधा पांडे, भगवती प्रसाद,सुधीर,मिथिलेश दीक्षित, पुष्प रंजन, दुर्गेश मोहन, सुधा पांडे, ,राजेंद्र राज, संतोष मालवीय, चैतन्य किरण,  शैलेंद्र सिंह,सुनील कुमार उपाध्याय,नीलम श्रीवास्तव आदि l 

♦️🔷 प्रस्तुति : राज प्रिया रानी ( उपाध्यक्ष ) / सिद्धेश्वर (अध्यक्ष) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद )


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