अनुपम कथा शैली के कारण, कथा जगत में दमदार उपस्थिति दर्ज करते हैं अशोक प्रजापति! : सिद्धेश्वर
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सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने के लिए आंचलिक कहानियों का सृजन जरूरी है! : रश्मि लहर
पटना : 08/ 07?23 l ओपेरा हाउस औऱ ठौर ठिकाना जैसी कथा कृति एवं उपन्यास के माध्यम से, कथा जगत में अपनी अलग पहचान बनाने में सक्षम अशोक प्रजापति अपनी मौलिक कथा शैली के कारण, आज भी उतने ही सक्रिय है जितने दो दशक पहले थे l उनकी सृजनात्मकता में शब्दों की कलाबाजी होते हुए भी, भाषा की वह सहजता है, जो गिने-चुने कथाकारों की लेखनी में दिख पड़ती है lअनोखे दृश्य एवं प्रभावपूर्ण संवाद से आरंभ उनकी कहानियां, पाठकों को आगे पढ़ने के लिए विवश कर देती हैl रोजमर्रा की जिंदगी से उठाए गए कथानक को बहुत ही खूबसूरती के साथ कहानी की परिदृश्य से जोड़ देते हैं, जिसके कारण पाठक आगे और आगे पढ़ता चला जाता है lइन कहानियों के संवाद से ही आप समझ सकते हैं कि अशोक प्रजापति अपनी अनुपम कथा शैली के कारण, कथा जगत में दमदार उपस्थिति दर्ज करते हैं!
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में गूगल मीट के माध्यम से फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l
लोकप्रिय कथाकार अशोक प्रजापति की कहानी संग्रह पर समीक्षात्मक टिप्पणी अपनी डायरी में प्रस्तुत करते हुए सिद्धेश्वर ने विस्तार से कहा कि " कहानी स्वयं के लिए ना लिखकर पाठक के लिए लिखी जानी चाहिए साथ ही उसे समकालीन समाज के चरित्रों का प्रतिनिधित्व करने वाला भी होना चाहिए l कुछ ऐसी ही बात हमें नवीन कथा कृति नीला चांद और पीले तारे " की कहानियों में भी देखने को मिलती है!
मुख्य अतिथि वरिष्ठ कथाकार अशोक प्रजापति ने कहा कि समकालीन कहानी को आम पाठकों से जोड़ने में सेतु का काम कर रहे हैं मित्र सिद्धेश्वर जी l आंचलिक कहानी के प्रति क्यों उदासीन है आज के कथाकार जैसे ज्वलंत विषय को उठाकर उन्होंने रचनात्मक सक्रियता का परिचय दिया है lउन्होंने अपनी एक कहानी का पाठ भी किया!
पूरे कथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए लखनऊ की युवा लेखिका रश्मि लहर ने कहा कि - " कहानी गद्य साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा है, जो जीवन के किसी विशेष पक्ष का मार्मिक, भावात्मक एवं कलात्मक वर्णन करती है। हमें ज्ञात है कि कहानी हिन्दी गद्य की वह विधा है जिसमें लेखक किसी घटना, पात्र या समस्या का क्रमबद्ध ब्योरा देता है जिसे पढ़कर एक समन्वित प्रभाव उत्पन्न होता है। मुंशी प्रेमचंद ने कहीं लिखा था कि- " कहानी वह ध्रुपद की तान है जिसमें गायक महफ़िल शुरू होते ही अपनी संपूर्ण प्रतिभा दिखा देता है। एक क्षण में चित्त को इतने माधुर्य से परिपूर्ण कर देता है, जितना रातभर गाना सुनने से भी नहीं हो सकता है!" कथावस्तु, चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देश-काल, भाषा-शैली तथा उद्देश्य जैसे तत्वों से सजी -सॅंवरी कहानी पाठकों/श्रोताओं को बहुत जल्द प्रभावित कर लेती है। कहानी का इतिहास तो सदियों पुराना है। विशेष बात यह है कि हिन्दी साहित्य की प्रमुख कथात्मक विधा के रूप में कहानी आज भी उतने ही सम्मान के साथ साहित्यिक जगत में अपनी जगह बनाए हुए है। यदि आंचलिक कहानी की बात करें तो फणीश्वरनाथ रेणु का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। अंचल किसी सुनिश्चित भूभाग को कहते हैं , इसमें इक जुड़ने से इसका अर्थ अंचल से संबंधित हो जाता है। हम कह सकते हैं कि किसी अंचल या निश्चित भू-भाग के निवासियों का रहन-सहन, वेशभूषा, रीति-रिवाज तथा लोक-संस्कृति को जिस कथा में दर्शाया जाता है, उसे आंचलिक कथा कहते हैं। ऐसी कथाओं में आंचलिक जीवन की धुन, लय, ताल, सुर, सुंदरता तथा कुरुपता को शब्दों में बाॅंधने का सफल प्रयास किया जाता है।
आंचलिक कहानीकारों में प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, नागार्जुन, देवेन्द्र सत्यार्थी आदि लेखकों का नाम लोकप्रिय है। जनवादी चेतना को जगाते हुए कहानीकार बड़ी निपुणता से पाठकों का अंर्तमन छू पाने में सफल हुए हैं। आज की चर्चा का विषय बहुत उपयोगी लगा। आजकल आंचलिक कहानियाॅं बहुत कम लिखी जा रही हैं, जबकि अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने के लिए ऐसी कहानियों की आवश्यकता है। आज 'सिद्धेश्वर' जी ने 'फणीश्वरनाथ रेणु' को याद करते हुए अपने वक्तव्य के माध्यम से मगही, भोजपुरी, अवधी भाषा के साहित्यकारों की कमी तथा उनको राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा न मिल पाने की व्यथा जाहिर की साथ ही 'पुस्तकनामा' के अंतर्गत 'अशोक प्रजापति' की कहानी की पुस्तक 'नीला चाॅंद और पीले तारे' पर संक्षिप्त चर्चा की, जिसके माध्यम से यह ज्ञात हुआ कि 'अशोक' जी के साहित्य में लोक-संस्कृति को दर्शाने वाले विषय तथा देशज बोलियों की प्रमुखता रहती है।
यह भी प्रासंगिक रहा कि संपादकों की बेरुखी तथा भूमण्डलीयकरण के कारण भी आंचलिक कहानीकारों का रुझान कम हो रहा है।
इस हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन में ऑनलाइन अपनी कहानियां पढ़ने वाले कथाकारों में क्रमशः अशोक प्रजापति, रश्मि लहर, ऋचा वर्मा, अलका वर्मा, सपना चन्द्रा, श्री अनुज प्रभात , रजनी श्रीवास्तव अनंता , नलिनी श्रीवास्तव, इरा जौहरी, इंदु उपाध्याय, वंदना भंसाली तथा मंजू सक्सेना जैसी साहित्यिकारों ने विभिन्न विषयों पर अपनी लेखनी/विचारों को सशक्त रूप से प्रस्तुत किया तथा पटल को समृद्ध किया। रचनाओं में संप्रेषणीयता, सटीकता, कसावट, सामाजिक विषमता, आंचलिकता का पुट रहा तथा रचनाएं सार्थक उद्देश्य दे पाने में सफल रहीं। सामाजिक चेतना लाने के लिए ऐसी गोष्ठियों की आज के समय में बहुत आवश्यकता है। एक सफल आभासी आयोजन के लिए सिद्धेश्वर जी प्रशंसा के पात्र हैं।
इन कथाकारों के अतिरिक्त कहानी एवं कथा सृजन पर अपनी बेबाक टिप्पणी प्रस्तुत करने वाले में प्रमुख है निर्मल कुमार डे,सुहेल फारुकी,सुधा पांडे, भगवती प्रसाद,सुधीर,मिथिलेश दीक्षित, पुष्प रंजन, दुर्गेश मोहन, सुधा पांडे, ,राजेंद्र राज, संतोष मालवीय, चैतन्य किरण, शैलेंद्र सिंह,सुनील कुमार उपाध्याय,नीलम श्रीवास्तव आदि l
♦️🔷 प्रस्तुति : रश्मि लहर ( प्रांतीय सचिव ) / सिद्धेश्वर (अध्यक्ष) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद )
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धन्यवाद
हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि)
(संस्थापक- साहित्य आजकल, साहित्य संसार)