Showing posts with label Siddheshwar. Show all posts
Showing posts with label Siddheshwar. Show all posts

3/13/23

पुस्तक मेले में पुस्तक रखना और लोकार्पण करना मात्र फैशन बनकर रह गया है l" सिद्धेश्वर

   पुस्तक मेले में पुस्तक रखना और लोकार्पण करना मात्र फैशन बनकर रह गया है l"  सिद्धेश्वर 

----------------------------------------------------------

 साहित्य की कसौटी अगर कमजोर होगी तो सामाजिक विकृतियां कैंसर का रूप धारण कर लेंगी। :डॉ बी एल प्रवीण

       पटना :  13/03/23 ! " 'पुस्तक मेला या चाय पान ठेला "  जैसे व्यंग्य के माध्यम से इस बात पर चिंतन - मनन भी कर सकते हैं कि इस तरह की पुस्तक मेले में चाट - पकोड़े की अपेक्षा पुस्तक की बिक्री कैसे बढ़ाई जाए ? सामर्थ्यवान कुछ लेखकों को छोड़कर, आर्थिक रूप से असक्षम श्रेष्ठ रचनाकारों की श्रेष्ठ पुस्तकों का प्रकाशन कैसे हो और वह पुस्तक मेले तक कैसे पहुंचे ? निश्चित रूप से यह कोई सरकारी संस्थान ही  कर सकता है l लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे देश का साहित्यिक संस्थान भी पारदर्शी नहीं होता और सोर्स पैरवी के आधार पर बार-बार मुख्य धारा के लेखकों का ही चुनाव किया जाता है , और नए लेखकों के नाम पर स्तरहीन पुस्तकों को अनुदान दिया जाता है, जो किसी के लिए लाभप्रद साबित नहीं होता  l जिसके कारण उन पुस्तकों का पाठक वर्ग नहीं मिल पाता, ऎसी पुस्तकें नि:शुल्क बांटी जाती हैं। ऐसी पुस्तकें सरकारी खरीद का हिस्सा भले बन जाएं पर इन पुस्तकों को पाठक क्यों पढ़ना चाहेगा l ऐसी स्तरहीन रचनाओं को क्यों खरीदना चाहेगा आम पाठक पुस्तक मेले से ?

        पुस्तक मेले में अपनी पुस्तकों को रखना एक फैशन के तहत, मात्र औपचारिकता बनकर रह जाती है l बल्कि हमने जैसा कहा कि पुस्तक मेले में पुस्तक रखने का खर्च भी लेखकों से ही पहले वसूल लिया जाता है l ऐसे में पुस्तक मेले की आखिर उपादेयता क्या है ? प्रेमचंद, बच्चन ,निराला आदि लेखक तो, पुस्तक मेले के बिना भी बिकते आये हैं l और ऐसे पुस्तक मेला में भी लाभ तो उनको ही मिलता है। l बाकी लेखकों का सिर्फ प्रचार- प्रसार होता है l उनकी पुस्तकों की बिक्री कहीं  से उत्साहवर्धक नहीं होती, पर वे पुस्तक मेले को आत्ममुग्ध होने का माध्यम जरूर बना लेते हैं l" 

         भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में

इस, गूगल मीट के माध्यम से फेसबुक के अवसर

साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, " हेलो फेसबुक   विचार गोष्ठी के तहत पुस्तक मेला या चाय पान का ठेला!"  का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर  ने उपरोक्त उदगार व्यक्त किये l

                मुख्य अतिथि इंदू उपाध्याय ने कहा कि-- आजकल साहित्य का स्तर गिरता जा रहा है। साहित्य साधना ने व्यापारवाद का रुप ले लिया है शायद।नाम कमाने के चक्कर में भूल रहे हैं कि हम भावी पीढ़ी को क्या परोस रहे हैं। सोशल मीडिया ने बहुत हद तक इसका स्तर  गिरा दिया है। पढ़ना और लिखना दोनों ही कम होता जा रहा है। सच में प्रकाशक दुकानदार हो गए हैं। लेखक की पुस्तक छपती है उन्हें अलग तनाव रहता है कि ज्यादा से ज्यादा बिक्री हो नाम हो उनका।

साहित्यिक पारदर्शिता समाप्त होती जा रही है। 

          विचार गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्यार जगत पत्रिका के संपादक  डॉ बी एल प्रवीण ने कहा कि

--यह सच है कि आजकल प्रकाशन महज  व्यवसाय का रूप ले चुका है जहां लेखन के स्तर-मूल्यांकन की कोई कसौटी नहीं होती। कुछ भी छप सकता है इस शर्त पर कि पैसा लेखक को ही देना होगा। ऐसे में स्वस्थ साहित्य का सृजन आहत होता है। यह सबसे गंभीर विषय है। साहित्य की कसौटी अगर कमजोर होगी तो सामाजिक विकृतियां कैंसर का रूप धारण कर लेंगी। इसके लिए साहित्य बिरादरी के जिम्मेवार लोगों को सामने आना होगा l

       ऑनलाइन विचार गोष्ठी में डॉ नीलू अग्रवाल ने कहा कि सर्वप्रथम ऐसे आयोजनों के लिए सिद्धेश्वर जी बधाई के पात्र हैं  l पुस्तक मेला या पान का ठेला, विचारणीय विषय है। मेरे विचार  से बड़ी बात है पुस्तक मेले का लगना। हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे पटना शहर में भी पुस्तक मेला लगता है और इस परंपरा से हमारी आगे की पीढ़ियां भी जुड़ रही है। मेले में जो कुछ साहित्यिक‌ और बौद्धिक सा माहौल मिलता है, वह अनुभव की चीज है, बाकी तो जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी!'  जिसे किताबों की खुशबू खींचती है वह किताबों की तरफ जाता है और जिसे ठेले की खुशबू, वह ठेले की तरफ। एक ही छत के नीचे हर प्रकाशन की पुस्तकें मिलना साहित्य प्रेमियों को लुभाता है और वे खींचे चले आते हैं। रिमझिम झा ने कहा कि-- पुस्तकों को उपहार के रूप में देने कि हमारी जो प्रथा थी उसे पूरा करने में पुस्तक मेला अहम भूमिका निभाता रहा है। विषय संबंधी किताबों के अलावा अन्य पुस्तकें भी पढ़नी चाहिए और यह हम अभिभावकों का कर्तव्य है की इस परंपरा को अपने बच्चे तक पहुंचाएं। जबकि डॉ शरद नारायण खरे ने कहा कि पुस्तक मेला अपनी गरिमा,स्तरीयता,गुणवत्ता व उत्कृृ्टता को खो रहा है, यह यथार्थ है। उसका कारण यह है कि लोगों में पढ़ने की प्रवृत्ति घट रही है, पुस्तक को क्रय करना कम हो रहा है। दरअसल रचनाकार भी अंधाधुंध गति से लिख रहे हैं और अपनी लागत पर छपवा भी रहे हैं, भले ही वे बिकें,न बिकें। उन्हें कोई पढ़े या न पढ़े। दरअसल रचनाओं में,पुस्तकों में गुणवत्ता होना चाहिए। केवल अधिक संख्या में पुस्तकों का प्रकाशन ही संतोष का विषय नहीं है,बल्कि अच्छी पुस्तकें छपना चाहिए, बिकना चाहिए, और उन्हें पढ़ा जाना चाहिए। रजनी श्रीवास्तव अनंता

 ने कहा कि  - पुस्तक मेला साहित्य प्रेमियों के लिए एक वरदान तो है हीं, मगर इसके साथ लगने वाले चाय-पान के ठेले और कलात्मक कृतियां लोगों को पुस्तकों तक लाने में मददगार साबित होती हैं। कई बार बच्चे पुस्तकों की तरफ आकृष्ट हो जाते हैं और खरीदवाते हैं। पुस्तकों की बिक्री बढ़ाने के लिए साहित्य में गुणवत्ता का होना बहुत जरूरी है, ताकि ई-बुक,पीडीएफ और ऑडियो बुक पढ़ने-सुनने के बाद भी पुस्तक के रूप में पढ़ने की हमारी इच्छा जागृत हो सके। ऋचा वर्मा के अनुसार - पुस्तक मेले में कम कीमत की पुस्तकों को अधिक स्थान मिलना चाहिए और पेपरबैक संस्करण ऐसी निकाली जाए जिसे आम पाठक आसानी से खरीद सके lनलिनी श्रीवास्तव नील ने कहा कि - पुस्तक- मेला एक ऐसा आयोजन स्थल है जहाँ अनेक नामचीन साहित्यकारों की पुस्तकें एक साथ मुहैया हो जाती हैं । यहाँ पर सभी विषयों की पुस्तकें सरलता से प्राप्त हो जाती हैं । पाठक अपनी रुचि अनुसार पुस्तक की गुणवत्ता की जाँच कर सकता है , परख सकता है और विषय वस्तु की जानकारी ले सकता है । एक अच्छा पाठक अथवा लेखक इस पुस्तक मेले का भरपूर आनन्द उठाता हैं। युवा लेखिका गार्गी ने कहा --कई दुर्लभ पुस्तकें एक छत के नीचे मिलना इसकी सबसे बड़ी विशेषता है ।यहाँ जगह -जगह गोष्ठी में ज्ञान के आदान -प्रदान के साथ -साथ लेखक और पाठक का मिलाप , प्रकाशक और पाठक मिलाप ,प्रसिद्ध व्यक्तित्व से मिलना और उसके विचार व कला को देखना और सुनना एक आम आदमी के जीवन को ख़ास बना देता है ।मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि पुस्तक मेला का इंतज़ार सब को बेसब्री से रहता है चाहे वह पुस्तक प्रेमी हो अथवा ना हो । 

                इनके अतिरिक्त  नलिनी श्रीवास्तव , ऋचा वर्मा,पूनम देवा, कृष्ण मुरारी,अर्चना खंडेलवाल,  सुधा पांडे, ,राजेंद्र राज, संतोष मालवीय, चैतन्य किरण,  शैलेंद्र सिंह,सुनील कुमार उपाध्याय,नीलम श्रीवास्तव आदि विचारकों ने भी अपने विचार रखे l

 🔷♦️प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव / भारतीय युवा साहित्यकार परिषद )

नोट:- यदि आप भी अपनी रचना प्रकाशित करवाना चाहते हैं या अपनी प्रस्तुति Sahitya Aajkal की Official Youtube से देना चाहते हैं तो अपनी रचना या वीडियो टीम के इस Whatsapp न0- 7562026066 पर भेज कर सम्पर्क करें।


सूचना:- साक्षात्कार देने हेतु यहाँ क्लिक करें

  यदि आप अपना साक्षात्कार देना चाहते हैं तो आदरणीय यह साक्षात्कार देने हेतु साहित्य आजकल की आधिकारिक फॉर्म है। अतः इसे सही सही भरकर हरे कृष्ण प्रकाश के साथ अपना साक्षात्कार तिथि सुनिश्चित करवाएं।।

           सूचना:- साक्षात्कार देने हेतु यहाँ क्लिक करें




कवि सम्मेलन की वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें


यदि आप कोई खबर या विज्ञापन देना चाहते हैं तो सम्पर्क करें।

Email:- sahityaaajkal9@gmail.com  

नोट:- यदि आप भी अपनी रचना प्रकाशित करवाना चाहते हैं या अपनी प्रस्तुति Sahitya Aajkal की Official Youtube चैनल से देना चाहते हैं तो अपनी रचना या वीडियो टीम के इस Whatsapp न0- 7562026066 पर भेज कर सम्पर्क करें।

सूचना:- साक्षात्कार देने हेतु यहाँ क्लिक करें

  यदि आप अपना साक्षात्कार देना चाहते हैं तो आदरणीय यह साक्षात्कार देने हेतु साहित्य आजकल की आधिकारिक फॉर्म है। अतः इसे सही सही भरकर हरे कृष्ण प्रकाश के साथ अपना साक्षात्कार तिथि सुनिश्चित करवाएं।।

           सूचना:- साक्षात्कार देने हेतु यहाँ क्लिक करें

         (Online/Offline दोनों सुविधा उपलब्ध)

कवि सम्मेलन की वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
यदि आप कोई खबर या विज्ञापन देना चाहते हैं तो सम्पर्क करें।

 Email:- sahityaaajkal9@gmail.com  

धन्यवाद

हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि) 

(संस्थापक- साहित्य आजकल, साहित्य संसार)