12/23/23

पूर्णियां विश्विद्यालय गणित विभाग के छात्रों ने कार्यक्रम आयोजित कर मनाया गणित दिवस

 पूर्णियां विश्विद्यालय गणित विभाग के छात्रों ने कार्यक्रम आयोजित कर मनाया गणित दिवस।

पूर्णियां विश्विद्यालय सह पूर्णियां कॉलेज पूर्णियां के स्नाकोत्तर गणित विभाग के छात्रों द्वारा संयुक्त रूप से गणित दिवस के अवसर पर महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जयंती मनाई गई। कार्यक्रम की शुरुआत सर्वप्रथम श्री निवास रामानुजन के तैलचित्र पर पुष्प अर्पित कर हुई। मंच संचालन हरे कृष्ण प्रकाश कर रहे थे।

          कार्यक्रम में गणित विभागाध्यक्ष डॉ अश्वनी कुमार मिश्रा, सी सी डी सी डॉ एस एन सुमन, डॉ किसलय किशोर, प्रो संजय कुमार उपस्थित रहे। कार्यक्रम में छात्रों को संबोधित करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ अश्वनी कुमार मिश्रा कहा कि श्री निवास रामानुजन महान गणितज्ञ थे। इनकी उपलब्धियों को हमें अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए। वहीं विश्विद्यालय सी सी डी सी डॉ एस एन सुमन ने छात्रों से रामानुजन से जुड़ी महत्वपूर्ण तथ्यों को साझा किया साथ ही रामानुजन नंबर के महत्व से छात्रों को रूबरू कराया। वहीं प्रो किसलय किशोर व संजय कुमार ने संयुक्त रूप से छात्रों को रामानुजन के जीवन से सिख लेते हुए खुद में आत्मसात कर आगे बढ़ने को कहा। 

वहीं छात्र रवि कुमार ने गणित के शब्दों से बने काव्य "रेखाओं में घिची हुई है, मेरी उम्र तमाम" प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के अंत में छात्र हरे कृष्ण प्रकाश ने जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं से जुड़ी कविता "अल्हर सी इस दुनियां में, रहते हैं कई लोग..." प्रस्तुति दी। छात्रों ने जमकर बजाई तालियां। कार्यक्रम में गणित विभाग के सैकड़ों छात्र छात्राएं शामिल हुए।


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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)



12/3/23

सफलता के शिखर (प्रेरणादायक कविता):- सलमान सूर्य

 शीर्षक :- सफलता के शिखर (प्रेरणादायक कविता):- सलमान सूर्य


  सफलता के शिखर (प्रेरणादायक कविता):- सलमान सूर्य. 

हे इन्सान तू रुक मत कभी।

हे इन्सान तू हार मत कभी ।


तुझे सफलता के शिखर तक पहुंचना है अभी,

तुझे परिश्रम करना है अति।


धैर्य रख हिम्मत से काम ले,

क्योंकि सफलता की सीढ़ी चढ़ना अभी।


हे इन्सान तू रुक मत कभी।

हे इन्सान तू हार मत कभी।


समय का एक-एक क्षण है अनमोल तेरे लिए,

समय कमान से निकले तीर की तरह कभी वापस न आता।


समय की कीमत को जो पहचान लेता,

मंज़िल तक वही है,पहुंच पाता।


हे इन्सान तू रुक मत कभी।

हे इन्सान तू हार मत कभी।


मुश्किलों का सामना करते हुए आगे बढ़ता रहा कर।

सदा प्रयास करता रहा कर,


भयभीत न हो, निराश न हो जीवन में कभी,

बस! सत्य के पथ पर सदा चलता रहा कर।


हे इन्सान तू रुक मत कभी।

हे इन्सान तू हार मत कभी।

✍🏻 कवि - सलमान सूर्य

       बागपत,उत्तर प्रदेश


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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)






 

11/12/23

 पतिव्रता:- 

कमला का हर दूसरे तीसरे दिन हमारे घर आ जाना पिता जी को न सुहाता था न ही मुझे। पिता जी को अच्छा न लगने का कारण था कमला का बदनाम शराबी पति । मुझे कमला का आना इसलिए अच्छा नहीं लगता था क्योंकि उसके साथ उसकी छोटी बेटी भी आती , जो भगवान जाने क्यों हमारे घर आते ही अपनी मां से खाना मांगने लगती, और उसे ऐसे जिद्द करता देख मां मुझे उसके लिए रोटी बनाने रसोईघर रवाना कर देती । कमला जब तक घर में होती, तब तक कभी वो तो कभी उसकी बेटी मां से कुछ न कुछ फरमाइश करते ही रहते।


कमला की उम्र पैंतीस साल से अधिक न होगी। दुबला पतला सा शरीर , रूखे बाल और चेहरे की झुर्रियां उसे उसकी उम्र से बीस - पच्चीस साल बड़ा दिखाती थीं। कमला का घर हमारे घर के पास ही था ,साथ लगती गली में। वह सारा दिन लोगों के घरों में घूम घूम कर औरतों का घर के काम में हाथ बटा देती और उसके बदले कभी कोई खाने की चीज या अपने बच्चों के लिए कपड़े ,बच्चों के स्कूल के पुराने बस्ते या जूते मांग लेती । घर जाकर फिर काम में जुट जाती । कभी कच्चे आंगन की लीपा पोती करती तो कभी घर के बाकी काम । कमला की दो बेटियां और एक छोटा बेटा था । बेटियों को घर के काम में हाथ बटाते किसी ने कभी देखा नहीं। सारा दिन लोगों के घरों में काम केतना ,कुछ न कुछ मांग कर घर लाना ,अपने घर का काम और रात को शराबी पति से मार खाना ,यही उसकी दिनचर्या थी।फिर भी लोगों के सामने बेशर्मों की तरह हंसती रहती थी।

उसका पति छिन्दा हमेशा से निठल्ला नहीं था। वह वन विभाग के एक बड़े अधिकारी के घर बावर्ची था ।वहीं कमला उससे मिली थी। तब इसकी उम्र कोई सोलह सत्रह साल रही होगी। एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाली कमला को न जाने इस छिंदे ने क्या वायदे किए कि यह उसके साथ यहां भाग आई। छिन्दे की मां ने खुशी खुशी उसे अपनाया और तब से यह यहीं है । इसके मायके वालों ने कमला से सारे रिश्ते तोड़ लिए थे ,बाकी किसी रिश्तेदार ने भी कभी इसे फिर मुंह नहीं लगाया । छिंदा वहां से तो काम छोड़ आया पर उसके बाद इसे एक डॉक्टर के घर काम मिल गया था । घर खर्च जैसे तैसे चल रहा था पर इसका मन कमला से कहां भरने वाला था । अपने ही गांव की एक औरत के साथ इसके नाजायज संबंध थे । अपनी ज्यादातर कमाई उसी के हवाले कर देता । उसी से रोज़ मिलने की हवस में नौकरी छोड़कर घर बैठ गया । तब से छिन्दा सारा दिन शराब पीकर घर  आराम फरमाता है और कमला पति प्रेम की पट्टी अपनी आखों पर बांध कर लोगों के घर काम करके इसे और तीन बच्चों को पाल रही है।

जब भी कमला हमारे घर आती तो मैं बहुत चिढ़ती। उसे चुगली करने की आदत हमेशा से थी । शायद इसी लिए औरतें उसे अपने पास बैठा लेती थी । औरतों को भी दूसरे घर की बातों में हमेशा ही दिलचस्पी होती है और यह भी यहां की वहां करने में लगी रहती । घर घर जाकर ऐसे अस्थाई शरण से गुजारा करना मुश्किल था इसलिए उसने कुछ बड़े घरों में पक्का काम पकड़ने की कोशिश तो बहुत की, पर इसकी बात ना बनी। इसका कारण भी इसका पति ही था । यह दो तीन दिन जिस भी घर में काम कर लेती ,इसका पति वहीं पैसे मांगने पहुंच जाता। लोग महीने से पहले तनख्वाह देने से मना करते,तो यह गाली गलोच पर उतर आता ।कई बार गांव की औरतें कमला को कहती - " क्यों री,कब तक अपनी देह तोड़ेगी, उस ब्रह्मराक्षस को बोल ,कोई काम करे।"

कमला बात काटते कह देती -" यह तो करना चाहते हैं काकी,पर शरीर साथ भी तो दे,बहुत कमजोर हैं और कुछ लोगों ने इनके पैसे मार रखे हैं जैसे ही पैसे वापिस मिलेंगे यह अपना कारोबार शुरू कर लेंगे "। 

भगवान जाने यह झूठ कमला खुद लोगों से बोलती थी या इसके पति ने ऐसे सुरखाब के सपने इसे सचमुच दिखा रखे थे जिनके पूरा होने की आस में यह रात दिन मरती थी ।

एक दिन सुबह सुबह कमला हमारे घर आई और मां के सामने रोने लगी कि उसके बच्चे कल से भूखे हैं। मां ने पिता जी से छिपाकर उसे थोड़ा सा आटा और बनी हुई तरकारी दे दी। मैं तब बरामदे में बैठ कर खाना खा रही थी तो सहानुभूति वश उसे खाने के लिए पूछा पर उसने मुस्कुरा कर मना कर दिया । इस इंकार की उम्मीद मुझे कमला से नहीं थी। उसके जाने पर मां ने बताया कि जब तक कमला अपने पति को नहीं खिला देती तब तक यह अन्न का दाना मुंह तक भी नहीं लाती । मुझे यह सुनकर कमला और उसके पति दोनों पर ही गुस्सा आया । छिन्दा लगभग चालीस साल का हट्टा कट्टा पुरूष था जो अपने काले वर्ण की वजह से सचमुच किसी दैत्य से कम न लगता था और जीर्ण कंकाल जैसी दिखने वाली कमला ने उसे भगवान का दर्जा दे रखा था। 

मैं कमला की शारीरिक रूप रेखा और हमेशा औरतों से चिपके रहने की आदत के कारण कई बार उसकी पीठ पीछे छिपकली कह कर बुलाती थी । कई दिन से मैंने कमला को हमारे घर के चक्कर काटते नहीं देखा था तो मां से पूछ लिया -" मां, यह छिपकली कहीं चली गई है क्या ? कई दिन से दिखी नहीं।" मां ने बताया कि बहुत हाथ पैर जोड़ने पर उसे सरपंच के घर पक्का काम मिल गया है। अब वो दिन का ज्यादातर समय वहीं होती है । उनका घर साफ करती है और रसोई में मदद करवाती है । वहां से पक्की तनख्वाह लग गई है और साथ ही रोज़ बचा हुआ बहुत खाना भी मिल जाता है । एक दिन मां ने कुछ काम से कमला को बुलवाया पर उसने बहाना बना दिया कि उसकी तबीयत ठीक नहीं। इसपर मां ने चिढ़कर कहा -" सब पता है मुझे कौन सी तबीयत ढीली है इसकी , जब मांगना होता था तो हमारी दहलीज नहीं छोड़ती थी और अब काम मिल गया तो बुलाने पर भी नहीं आती। लोग सच ही कहते हैं इसके बारे , यह अपने माई बाप की नहीं हुई तो किसी और की क्या होगी।" उस दिन के बाद मां ने किसी काम के लिए कमला को नहीं बुलवाया । एक दो बार वह खुद आई पर मां ने उसे नजरंदाज कर दिया।

मां की कमला को लेकर बेरुखी ज्यादा दिन नहीं चली। एक दिन पता चला कि कमला के पति ने उससे शराब पीने के लिए पैसे मांगे । पैसे न मिलने पर उसने कमला को काफी मारा पीटा और फिर पैसे मांगने सरपंच के घर चला गया । घर पर उस समय केवल सरपंच की पत्नी और बहू थीं। उन्होंने पैसे देने से यह कहकर इंकार कर दिया कि महीना पूरा होने से पहले वे तनख्वाह नहीं देंगी और वैसे भी कमला राशन के लिए कुछ पैसे पहले ही ले चुकी है। सरपंच की पत्नी ने उससे कहा - " तुम वैसे भी  पैसे शराब और औरतबाजी में ही खर्च करोगे ।" कमला ने कभी उसके आगे जुबान नही खोली थी इसलिए किसी औरत से बात सुनने की उसे आदत नहीं थी। गुस्से में आकर उसने सरपंच की पत्नी पर हाथ उठा दिया । अचानक हुए आक्रमण से वह खुद को संभाल ना पाई और नीचे गिर पड़ी जिससे उसका सिर दरवाज़े से टकरा गया और खून निकलना शुरू हो गया । छिन्दा तो वहां से घर भाग आया पर सरपंच ने जाकर अपनी पत्नी को अस्पताल दाखिल करवा कर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करवा दी। गिरफ्तारी के डर से कमला के पति ने कमला का सिर खुद ही फाड़ दिया और बहते खून के साथ कमला को लेकर कोतवाली जा पहुंचा। वहां जाकर झूठी कहानी गढ़ी कि सरपंच की औरत ने गुस्से में कमला का सिर फोड़ दिया और बीच बचाव में ही सरपंच की पत्नी घायल हुई है । सरपंच ने अपना पलड़ा कमज़ोर होता देखकर समझौते की बात की ।लोगों ने भी उसे सलाह दी कि कोतवाली से बात निपटाना ही सही है ,छिन्दा और कमला तो गांव में ही रहेंगे । इनका जीना तुम वहां हराम कर देना । दोनों तरफ से समझौता कर लिया गया । छिन्दा खुश था ।वह गलती करके भी आसानी से जो छूट गया था।

इस घटना के बाद कमला का जीवन और मुश्किल हो चुका था ।उसे कोई अपने घर काम पर नहीं रखता था । उसका शरीर पहले ही बहुत कमजोर था और अब चोट लगने के कारण उसका बहुत सारा खून बह चुका था । डाॅक्टर ने कुछ और दिन अस्पताल में रहने को कहा पर छिन्दा उसे यह कहकर घर ले आया कि खाने का इंतजाम कौन करेगा । कमला खेतों में काम करने लायक नहीं रही थी । कुछ दिन लोगों के घर जा जाकर अपनी पट्टियों का हवाला देकर लोगों की सहानुभूति इक्कठा करती रही और घर चलाती रही । पर उसके निठल्ले पति के कारण यह तरीका ज्यादा दिन काम न आया । अब उसने लोगों के खेतों में काम करना शुरू कर दिया था । कमला को उम्मीद थी उसके जीवन में भी कभी न कभी अच्छे दिन आयेंगे। उसके पति का कारोबार होगा,उसकी बेटियां पढ़ लिखकर अफसर बनेंगी फिर उसकी पूरी ऐश होगी । यही सोचकर वह बेटियों को घर के काम में हाथ बटाने को न कहती थी । सोचती थी जब अच्छे दिन आयेंगे तो वह पूरा आराम करेगी।

एक दिन मां पिता जी किसी संबंधी के यहां गए थे ।मुझे मां कह गई कि हलवाई की दुकान से अपने लिए कुछ मंगवा लेना , अकेली क्या रसोई पकाना । मैंने गली के एक बच्चे को समोसे लेने दुकान की और भेजा । मां का कहीं जाना मेरे लिए ऐसे ही दावत का मौका होता है । मैं दरवाजे के पास आकर उस बच्चे के वापिस आने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी कि तभी मैंने गली में कमला और उसके पति को देखा । कमला कहीं से मांग कर चूल्हे के लिए लकड़ियां ला रही थी और उसका पति आगे आगे चल रहा था । अचानक लकड़ियों की गठरी कमला के सिर से गिर गई , यह देखकर कमला के पति ने एक लकड़ी उठाई और उसे जानवरों की तरह मारना शुरू कर दिया। मार कर जब उसका जी भर गया तो छिन्दा कमला को उसी हालत में छोड़कर घर चला गया । मैं दरवाजे की ओट से यह सारा भयावह नजारा देख रही थी।कमला लकड़ियों को दोबारा सिर पर रखने की कोशिश कर रही थी कि तभी मैं उसके पास गई और बिखरी हुई लकड़ियां समेट कर उसकी ओर बढ़ा दीं। कमला की आखों से अचानक आसूंओं की मानो बाढ़ सी उमड़ आई और वह लकड़ियां लेकर घर चली गई । मैं वहीं खड़ी स्थिति को भांप रही थी । कमला मेरे सामने अपमानित होने के कारण नहीं रोई, उसके रोने का कारण कुछ और था । सारी उम्र वह लोगों के सामने अपने पति की जिस आदर्श छवि को प्रस्तुत करती आई थी , वह मेरे आगे टूट कर चूर हो चुकी थी।

कमला को उस दिन मैंने आखिरी बार देखा । कुछ दिन बाद कमला की बड़ी बेटी मां से कुछ पैसे मांगने आई । कमला के बारे में पूछने पर उसने बताया कि मां बहुत बीमार है और अस्पताल में है। यह सुनकर पिता जी ने कुछ पैसे उसे दे दिए और मां को बच्चों के लिए खाना देने को भी कहा। कमला बीमार तो लंबे समय से थी ,पर शायद अब उसका शरीर जवाब दे रहा था। 

छिन्दा इस मौके को जाने नहीं देना चाहता था । वह घर घर जाकर लोगों से कमला के इलाज के लिए पैसे मांगने लग गया । जो पैसे मिलते उससे वह शराब पी लेता और बच्चे लोगों के से घर मांग कर अपना गुजारा कर ही लेते । पर मांगने का यह क्रम भी कितने ही दिन चलता और कुछ लोग यह कहकर मना कर देते थे कि "कमला तो सरकारी अस्पताल में भर्ती है ,वहां के लिए  काहे को इतने पैसे चाहिए?" इसका तोड़ भी कमला के पति ने निकल लिया। वह हर हाल में पैसे ऐंठने का ऐसा अवसर हाथ से जाने नहीं देना चाहता था । उसने कमला को दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दिया और लोगों से यह कहकर पैसे मांगने लग गया कि " बहुत बड़े अस्पताल में भर्ती करवाया है , बहुत खर्च आता है रोज का । आप सहायता कर दीजिए , मैं और मेरा परिवार आपके यहां मेहनत मजदूरी करके सब चुका देंगे।"

सबको पता तो था कि ये कभी पैसे वापिस नहीं करेगा परंतु इंसानियत की खातिर कई लोगों ने इस परिवार की जितना हो सकता था , मदद की। गांव के कुछ शक्की मिजाज के लोगों ने पैसे देने से पहले डॉक्टर से बात करने की शर्त रखी तो डॉक्टर से बात भी करवाई गई । डॉक्टर ने बस इतना कहा -" मरीज का अच्छे से इलाज करवाया जाए तो यह ठीक हो जायेगा पर भविष्य में इससे मेहनत मजदूरी की उम्मीद नहीं की जा सकती। "

एक रात लगभग एक बजे अचानक मां की नींद किसी गाड़ी के हॉर्न से खुल गई । उन्होंने पिता जी को उठाया और देखने बाहर भेजा । साथ वाले कमरे में मेरी नींद भी खुल चुकी थी और मैं मां के पास आ गई । पिता जी ने वापिस आकर बताया कि एंबुलेंस गली में खड़ी है और कुछ अंजान लोग कमला के घर की ओर जा रहे हैं ।मां को अनहोनी का आभास हो गया । मां के बार बार कहने पर पिता जी कमला के घर की ओर गए । वापिस आकर उन्होंने बताया कि कमला की मृत्यु हो चुकी है और किसी गैर सरकारी संगठन की एंबुलेंस मृतक देह को छोड़ने आई थी । यह सुनकर मां की आखों से झर झर आंसू बहने लगे। मां ने उसी समय बच्चों का सोचकर कमला के घर जाना चाहा ,पर पिता जी ने बताया कि वे खुद वहां रुकना चाहते थे पर कमला के पति ने उन्हें वापिस भेज दिया। मां कमला के पति की बेवकूफी को कोस रही थी कि इस समय तो बच्चों को सहारे की कितनी जरूरत होगी ,पर कमला के पति के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था । कमला की लाश को बच्चों के हवाले कर वह रात को ही गांव के प्रतिष्ठित घरों में गया और यह कहकर पैसे ऐंठ लाया कि घर के बाहर एंबुलेंस खड़ी है और एंबुलेंस वाले बिना पैसे चुकता किए लाश नहीं दे रहे। 

अगले दिन कमला के मायके वालों को संदेश भेजा गया । मौत की खबर सुनकर मायके वाले भी सारे शिकवे छोड़ कर अपने आखिरी फर्ज अदा करने आ पहुंचे । कमला के मायके वालों ने विधि पूर्वक उसका अंतिम संस्कार करवाया । अपने नाती पोतों को बुरी हालत में देख कर कमला के पिता और भाई बहुत सा अनाज और पैसे भी दे गए और के गए कि बच्चे किसी के आगे हाथ न फैलाएं,जो कुछ चाहिए हो ,हमसे मांग लिया जाए । 

कुछ ही दिनों में कमला के घर की हालत सुधर गई । कमला के मायके वाले तो खुले हाथों से उन पर लूटा ही रहे थे ,गांव वालों ने भी बच्चों पर तरस खा कर जो जितना दे सका,दिया । सारा दिन मेहनत करके भी जैसी जिंदगी कमल अपने बच्चों को न दे सकी,वह उसकी मौत ने दिला दी । बच्चों के नाना ने कमला के पति को अच्छी नौकरी भी दिलवा दी ,जिसे वह कुछ महीने बाद ही छोड़ आया। गांव के कुछ लोगों का यह तक दावा था कि कमला बीमारी से नहीं मरी, छिन्दा उसके अंग बेचने के लिए ही बड़े शहर ले गया था ,और उसने वही किया भी । कमला को आखिरी स्नान करवाने वाली औरतों ने भी उसके शरीर पर जगह जगह टांकों के होने की बात की ,जो इस दावे पर मोहर की तरह थी ,पर किसी के पास कोई सबूत न था तो इस बात को मनघड़त ही मान लिया गया । 

स्नातक के बाद कुछ वर्ष आगे की पढ़ाई जारी रखने मैं घर से दूर रही। कमला का ख्याल भी मेरे मन में कभी नहीं आया । एक दिन मैंने यों ही मां से कमला के परिवार का हाल पूछा तो मां ने लंबी सांस लेकर कहा - " छिन्दा एक अधेड़ उम्र के आदमी से पैसे लेकर बड़ी बेटी का ब्याह उससे कर चुका है और अब तो वह खुद अपने लिए दुल्हन की तलाश में है ।"

मैंने हंसकर कहा- " लेकिन अब यह ब्रह्मराक्षस कमला जैसी कहां से लायेगा?" 

मां बोली -" पर उसे कमला जैसी नहीं चाहिए अब , वो कहता है कि अब किसी पतिव्रता से ब्याह करेगा जो घर के अंदर रहकर उसकी सेवा करे , कमला जैसी नहीं, कि सारा दिन लोगों के घरों में घूमती फिरे।" 



10/30/23

वो दस साल पुराना चेहरा (कविता):-मयूरी एस चवान

           वो दस साल पुराना चेहरा (कविता):-मयूरी एस चवान


वो दस साल पुराना चेहरा,

अब भी याद है मुझे, 

तुम से की गई,

हर बात याद है मुझे,

इंतजार में हर रोज,

करता रह गया तुम्हारा, 

पर कोई खत अब तक न आया तुम्हारा, 

जिसमें तेरी खुशी न हो, 

वो खता न कभी मैं करूं,

दुआ है मेरी मिल जाए मुझे

तू इस जनम में, गर

न मिले तो इस जहां को 

अलविदा मैं कहूं,

एक तेरे ही लिए तो

जी रहें हैं हम, 

हर रोज इन गिरते आँसूओ को

पी रहे हैं हम,

वो दस साल पुराना चेहरा,

अब भी याद है मुझे, 

तुम से की गई,

हर बात याद है मुझे...!

नाम - मयूरी एस चवान

पता - गुलबर्गा, करनाटका 

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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

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भाभा के जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर अंतरराष्ट्रीय काव्यांजलि

 भाभा के जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर अंतरराष्ट्रीय काव्यांजलि

भारत के प्रमुख वैज्ञानिक, ललित कला व संगीत के उत्कृष्ट प्रेमी, भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी जहांगीर भाभा के जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर श्रद्धांजलि स्वरूप डॉ. भीखी प्रसाद "वीरेंद्र" की अध्यक्षता एवं संस्थापक महासचिव डॉ. मुन्ना लाल प्रसाद के संचालन में "अंतरराष्ट्रीय साहित्य संगम" (साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था) के तत्वावधान में 29 अक्टूबर, रविवार को सायं 4 बजे से गूगल मीट के माध्यम से एक ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. डॉ. ब्रज नंदन किशोर, पूर्व विभागाध्यक्ष, डी.ए.वी. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, भारत एवं विशिष्ट अतिथियों के रूप में प्रो. डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी, दक्षिण एशियाई भाषा व संस्कृति विभाग, क्वांगतोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय चीन, श्री विनोद कुमार दुबे, सिंगापुर, डॉ. ऋतु शर्मा, नीदरलैंड, शिखा

रस्तोगी, थाइलैंड, श्री शांति प्रकाश उपाध्याय, सिंगापुर, श्री सुरेश पांडेय, स्वीडन एवं ईश्वर करुण, आबुधाबी उपस्थित थे।

सबसे पहले मुजफ्फरपुर से उपस्थित श्री महेश ठाकुर ने उद्घाटन गीत प्रस्तुत किया। उसके बाद मुख्य अतिथि ने भाभा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला एवं काव्यपाठ के अंत में सभी रचनाकारों पर उनके द्वारा एक संक्षिप्त टिप्पणी भी प्रस्तुत की गयी।

इस अवसर पर देश- विदेश के कवि एवं कवयित्रियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर भाभा के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। जिनमें प्रमुख रूप से जय प्रकाश अग्रवाल, नेपाल, डॉ. विपिन किशोर प्रसाद, डॉ. कमलेश शुक्ला कीर्ति, कानपुर, अर्चना आर्याणी, सीवान,  विद्युत प्रभा चतुर्वेदी 'मंजु', डॉ. अलका अरोड़ा, देहरादून, शारदा प्रसाद दुबे, 'शरतचंद्र' थाणे, मुंबई,

भावना सिंह, (भावनार्जुन) अलीगढ़, देवी प्रसाद पांडेय, अन्नपूर्णा मालवीय, प्रयागराज, शैल मिश्रा, कोलकाता, ईश्वरचंद्र जायसवाल, संत कबीर नगर, यूपी, सुखदेव शर्मा, बदायूं, इंदु उपाध्याय पटना, नीरज सिंह, सीवान एवं संतोष साह, दुर्गापुर

आदि के नाम शामिल हैं। अंत में डॉ. ओमप्रकाश पांडेय, सिलीगुड़ी ने सबके प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया।

यह पूरा कार्यक्रम बेंगलुरू से कंप्यूटर इंजीनियर अभिषेक प्रसाद द्वारा "गूगल मीट" के साथ-साथ "यूट्यूब" एवं "फेसबुक" पर लाइव प्रसारित किया जा रहा था ,जिसके माध्यम से दूर-दूर के श्रोता एवं दर्शक जुड़े हुए थे।

प्रस्तुति_दुर्गेश मोहन

समस्तीपुर(बिहार)


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9/26/23

स्नातकोत्तर गणित विभाग तृतीय सेमेस्टर के छात्रों ने निकाली नशामुक्ति जागरूकता रैली

साहित्य आजकल की खबर:- स्नातकोत्तर गणित विभाग तृतीय सेमेस्टर के छात्रों ने निकाली नशामुक्ति जागरूकता रैली 


पूर्णियां विश्वविद्यालय सह पूर्णियां कॉलेज पूर्णियां के स्नातकोत्तर गणित विभाग तृतीय सेमेस्टर के छात्रों द्वारा नशामुक्ति जागरूकता रैली निकाली गई। जागरूकता रैली को पूर्णियां यूनिवर्सिटी के सी सी. सी. डी सी डॉ एस एन सुमन ने हरी झंडी दिखा कर पूर्णियां विश्विद्यालय के बॉयज हॉस्टल से रवाना किया। 

      नशामुक्ति जागरूकता रैली का नेतृत्व कर रहे छात्र हरे कृष्ण प्रकाश ने जानकारी देते हुए कहा कि स्नातकोत्तर तृतीय सेमेस्टर गणित विभाग का सीआईए परीक्षा समाप्त होने के उपरांत यह जागरूकता रैली निकाली गई है। जिसमें पूर्णियां कॉलेज और पूर्णियां विश्विद्यालय पूर्णियां गणित विभाग तृतीय सेमेस्टर के समस्त छात्र-छात्राएं संयुक्त रूप से शामिल हुए हैं। सभी छात्रों के हाथों में नशामुक्त रहे बिहार, सुरक्षित रहे घर परिवार। "करोगे नशा तो बोनोगे रोगी, छोड़ोगे नशा रहोगे निरोगी"। सत्संगति से तुम नाता जोड़ो, ध्रुमपान करना अभी से छोड़ो। शराब पीकर जाओगे, घर नहीं पहुंच पाओगे, ''जन जन की यही पुकार-नशा मुक्त हो हर परिवार, आदि स्लोगन लिखी पट्टिकाओ व नारो के साथ भ्रमण किया। रैली विश्वविद्यालय के बॉयज हॉस्टल से होते हुए पूर्णियां कॉलेज परिसर स्थित महात्मा गांधी स्मारक पर माल्यार्पण कर समाप्त हुई। इस रैली का मुख्य उद्देश्य तमाम युवाओं को नशा से दूर रहने के प्रति जागरूक करना है। क्योंकि जब तक युवा जागरूक होकर नशे से दूर नहीं रहेंगे तब तक समाज का उत्थान संभव नहीं है।

        वहीं सी सी डी सी एस एन सुमन ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि नशा उस दीमक की तरह है जो हमारी संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था को दिन प्रतिदिन खोखला कर रहा है। इससे हम सभी को बचने की जरूरत है। प्रोफेसर डॉ नवनीत कुमार व किसलय किशोर ने संयुक्त रूप से कहा कि आज के योवाओं में बढ़ते नशे की लत हम सभी के लिए चिंता का विषय है और इस तरह के जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने से युवा जागरूक हो सकेंगे। उन्होंने कहा कि युवा ही देश की रीढ़ है और आज के समय यह देखा जा रहा है कि ज्यादातर युवा इस लत के शिकार होते जा रहे हैं अतः इसको लेकर सबों को जागरूक करने की जरूरत है। वहीं प्रोफेसर संजय कुमार ने कहा कि युवा सिर्फ नशीले पदार्थो के ही आदि नहीं है वे तो फोन के इतने आदि हो चुके हैं जो नशे के ही समान है। 

         वहीं छात्र राहुल कुमार, मुकेश कुमार ने संयुक्त रूप से कहा की हमारा समाज तभी बदल सकता है जब हम अपने आप को बदलेंगे अर्थात जब हम युवा नशा से दूर रहेंगे तभी देश नित नई बुलंदियों को छू सकेगा। इस जागरूकता रैली में मुख्य रूप से विश्विद्यालय सी सी डी सी एस एन सुमन, विभागाध्य डॉ अश्वनी कुमार मिश्रा, डा नवनीत कुमार, किसलय किशोर, संजय कुमार, छात्र हरे कृष्ण प्रकाश, राहुल कुमार, लक्ष्मी कुमारी, मुकेश कुमार, डिंपल कुमारी, मधु कुमारी, मिठ्ठू कुमार, मधुलता, रौशन कुमार, दीपक कुमार, पारस झा, मो वारिस आलम, कुमारी स्वेता, रजत कुमार, आरती कुमारी, साहिबा परवीन, अंशु मनाली, पूनम कुमारी, सुप्रिया कुमारी, प्रीति कुमारी, जूही कुमारी, शिल्पी कुमारी, पूजा रानी, पंकज कुमार, सुमन सौरव, राहुल राज, कोमल कुमारी, सोनू कुमार, पूजा रानी, दिवाकर कुमार, चंदन कुमार, आदित्य कुमार साह, मो जुलक्वाररेन, मो आमिर हुसैन, रौशन कुमार यादव, मीनाक्षी कुमारीआदि सैकड़ों छात्र छात्राएं मौजूद रहे।





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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)






9/25/23

समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में ': सिद्धेश्वर

'समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में ' : सिद्धेश्वर

"समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में ": रजनी श्रीवास्तव अनंता 

       पटना : 25/09/2023 कुछ लोग गज़ल कहते हैं और कुछ लोग गज़ल कहने के पहले उसे जीते हैं । गज़ल को जीते हुए शायर अपने अंदाज में कह उठता है -" मैं कटघरे में खींचकर फिर बेवजह लाया गया, /इसमें नया कुछ भी नहीं कितनी दफा आया गया  l/इससे बड़ी बदकिस्मती क्या और हो सकती मेरी, / जब धूप थी सिर पर मेरे, तब छोड़ कर साया गया l"  

       निश्चित तौर पर एक शायर की जीवंतता स्पष्ट नजर आती है उनके इन शब्दों में! और एक सार्थक गज़ल की यही सार्थक पहचान भी है, जो न केवल वस्तु औऱ लय के नाते अपितु कथ्य और शैली के नाते भी, पाठकों को अपने ढंग से आकर्षित करता है l समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में l यही वजह है कि अनिरुद्ध सिंहा जैसे प्रखर शायऱ भी उनके संबंध मेंकहते हैं -" संजीव प्रभाकर की गज़लों की लोकप्रियता और सफलता का कारण उनकी भाषा की सादगी है l जो पारंपरिक गज़ल की जटिलताओं के चढ़ाव को पार करते हुए अपने मुकाम को हासिल कर लेता है l वह भी बिना शब्दों की कलाबाजी किए l"

              भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में,  गूगल मीट के माध्यम से फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर आयोजित ऑनलाइन हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन के संयोजक सिद्धेश्वर ने अपनी डायरी के माध्यम से उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l गांधीनगर के सुप्रसिद्ध शायर संजीव प्रभाकर की गज़लों पर विस्तृत से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आशीर्वचन के तहत डॉ.कृष्ण कुमार ने ठीक ही लिखा है कि "गज़ल लिखना एक तपस्या है आप लाख नाक रगड़ ले मां सरस्वती की कृपा के बिना एक शेर गज़ल लिखना तो दूर की बात है l निश्चित तौर पर संजीव प्रभाकर ने यह तपस्या की है l उन पर मां सरस्वती की कृपा है  और शब्दों को अभिव्यक्त करने की अद्भुत प्रतिभा। " खासकर कई प्रेरणादायक बातें भी उन्होंने अपनी गज़लों के माध्यम से कहा है- "अपने पैरों में जो खड़ा होगा /, उसका कद हर जगह बड़ा होगा l"

            कार्यक्रम के प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि संजीव प्रभाकर ने एकल काव्य पाठ के तहत अपनी एक दर्जन से अधिक गज़लों का पाठ कर ढेर सारे श्रोताओं को मनमुग्ध कर दिया l उन्होंने इस दौरान कहा कि - "कोई मंच कितना बड़ा है इसका मापदंड उसके सामने बैठे लोग होते हैं। इस हिसाब से  'अवसर साहित्य धर्मी पत्रिका ' का यह मंच मेरे लिए बहुत बड़ा है। जहाँ मेरे अभिभावक तुल्य साहित्यकार बैठे हुए हैं। आदरणीय सिद्धेश्वर जी के संयोजन और संचालन में देश और विदेश के साहित्यकारों को जोड़ने का सफल प्रयास इस मंच ने  किया है। इसलिए यह  कहना उचित होगा कि यह मंच अपने उद्देश्य में शत प्रतिशत सफल हुआ है। वक्त की तासीर के साथ शब्द के अर्थ भी बदलते हैं और परिभाषाएं भी बदलती हैं। डिजिटाइजेशन के इस युग में हर चीज का केंद्रीकरण हुआ है और इस कारण ही उत्कृष्ट साहित्य और सूचनाएँ सर्व सुलभ हुई हैं। समय के साथ चलते हुए अवसर साहित्य धर्मी पत्रिका ने, इस क्षेत्र में अपना एक कीर्तिमान   स्थापित किया है। और इसका श्रेय संस्था के संयोजक, सूत्रधार और संचालक श्री सिद्धेश्वर जी को जाता है। 80 के दशक के लघुकथा आंदोलन से लेकर अभी तक इन्होंने साहित्य की समर्पण भाव से निस्वार्थ  सेवा की है। इन्होंने नए पुराने साहित्यकारों को एक मंच पर लाकर सीखने -सिखाने की एक परंपरा की शुरुआत की। इनका यह कार्य निश्चित रूप से स्तुत्य है। आप बहुआयामी प्रतिभा के धनी है। आपके रेखाचित्र देश के विभिन्न स्तरीय पत्र पत्रिकाओं के आमुख की शोभा बढ़ाते हैं। आपको बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं!

 कविता हमारी जरूरत है। इसमें हमारी चेतना सांस लेती है।भाव, अर्थ और अनुभूति काव्य के प्राण तत्व है तो अभिव्यक्ति तत्व काव्य का शरीर है। शब्दों के कौशलपूर्ण उपयोग से ही कथ्य प्रभावी बनता है।भाषा का सरल प्रवाह एक लय उत्पन्न करता है जिसके कारण भाषा कर्णप्रिय और सर्वग्राह्य बनती है। इसलिए काव्य में अनुशासन का महत्व बढ़ जाता है। काव्यों में छंदों के प्रयोग से यह अनुशासन पैदा होता है। इससे गेयता आती है। शब्द और संगीत में समन्वय तभी हो सकता है जब दोनों एक दूसरे के साथ कदम-ताल मिलाकर चलें। अर्थात् दोनों एक दूसरे को समझें।

 शब्द-खंडों की निश्चित बारंबारता से ही संगीत उत्पन्न होता है। इसलिए काव्य में नपे- तुले शब्दों का महत्व है । यह कहना गलत न होगा कि काव्य की हर विधा रूपवादी है। कविता की भूख जब तक आदमी में होगी तब तक आदमी जिंदा रहेगा। मुझे इस मंच पर मौका देने के लिए और मेरे ग़ज़ल संग्रह 'येऔर बात है' पर परिचर्चा करने के लिए इस मंच के सर्वेसर्वा  आदरणीय सिद्धेश्वर जी को बहुत-बहुत धन्यवाद! कार्यक्रम के सुंदर संयोजन और संचालन के लिए अध्यक्ष महोदया सुश्री रजनी श्रीवास्तव अनंता जी और संचालिका श्रीमती राज प्रिया रानी जी को हृदय से धन्यवाद देता हूँ ।"

            अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में युवा कवयित्री रजनी श्रीवास्तव अनंता ने कहा कि समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में l वैसे यह सच है कि सिद्धेश्वर जी और राज प्रिया  रानी जी के कुशल संचालन में बहुत सुंदर कार्यक्रम रहा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आदरणीय संजीव प्रभाकर जी की गजलों ने समां बांध दिया। इसके अलावा श्रीमती चंद्रिका व्यास, श्री शंकर सिंह, श्रीमती विजयाकुमारी मौर्य, श्रीमती रत्ना जी, श्रीमती सुधा पांडे जी, डॉ.अनुज प्रभात, श्रीमती अलका वर्मा, श्रीमती सपना चंद्रा, युवा कवित्री प्रियंका जी, श्रीमती राज प्रिया रानी, श्री शरद नारायण खरे,और स्वयं अध्यक्ष आदरणीय सिद्धेश्वर जी ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। मुझे इस शानदार कार्यक्रम में अध्यक्षता करने का मौका मिला और अपनी रचनाओं को सुनने का मौका मिला इसके लिए मैं मंच के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ।

                  हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख कवि थे- सर्वश्री संजीव प्रभाकर, शंकर, सुधा पांडेय , इंदु उपाध्याय,राज प्रिया रानी, सिद्धेश्वर, रजनी श्रीवास्तव अनंता,घनश्याम राम ,विजय कुमारी मौर्य, प्रियंका रतन, डॉ.अनुज प्रभात, चंद्रिका व्यास, डॉ अलका वर्मा, सपना चंद्रा आदि l दूसरे सत्र का संचालन किया युवा कवयित्री राज प्रिया रानी ने । 

         इस गोष्ठी में दुर्गेश मोहन, सुनील कुमार उपाध्याय, संजीव, कल्पना कुमारी, रशीद गौरी, आदि की भी महत्वपूर्ण भागीदारी रही l

♦️ प्रस्तुति राज प्रिया रानी ( उपाध्यक्ष) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद 

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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

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9/19/23

lआकार में छोटी मगर भाव में गंभीरता लिए होती है ,गोविंद भारद्वाज की लघुकथाएं !': सिद्धेश्वर


  " lआकार में छोटी मगर भाव में गंभीरता लिए होती है ,गोविंद भारद्वाज की लघुकथाएं !': सिद्धेश्वर

भाव, भाषा और प्रस्तुति  का सुन्दर  समन्वय देखने को मिलता है गोविंद भारद्वाज की लघुकथाओं में !:इंदु उपाध्याय

           


         पटना :19/9/23!  हिंदी साहित्य में लघुकथा सृजन की प्रक्रिया, अब कोई नई विधा  नहीं रह गई है l आठवें दशक से ही लघुकथा 'एक लघुकथा आंदोलन' के रूप में विकसित होकर, विश्व में इस तरह प्रसिद्ध हो गई है कि आज यह एक साहित्यिक विधा भी है और हिंदी साहित्य के लिए धरोहर भी  l छोटे आकार वाली लघुकथाओं के माध्यम से ही प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद , खलील जिब्रान, मंटो आदि जैसे लेखकों ने पाठकों का ध्यान अपनी ओर विशेष रूप से खींचा l

ऐसी ही छोटे आकार वाली लघुकथाओं के माध्यम से, पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचने में गोविंद भारद्वाज काफ़ी आगे नजर आते हैं l अधिक शब्दों का खर्च कर बड़े आकार में कविता या लघुकथा लिखना आसान हो सकता है, किंतु कहानी और उपन्यास नहीं  l बल्कि कविता और लघुकथा के मायने से,शब्दों की कंजूसी एक सफल लेखक की पहली पहचान बनती है l

     गोविंद भारद्वाज की तमाम लघुकथाओं को पढ़ने के बाद विश्वास के साथ हम  कह सकते हैं कि कम शब्दों में बड़ी बात कहना गोविंद भारद्वाज की लघुकथा की विशेषता है l आकार में छोटी मगर भाव में गंभीरता लिए होती है गोविंद भारद्वाज की लघुकथाएं जो जन मानस के हृदय की धड़़कन बनने में पूरी तरह सक्षम है l

         भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में

, गूगल मीट के माध्यम से फेसबुक के अवसर  साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर,   संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l उन्होंने डॉ गोविंद भारद्वाज की चुनी हुई लघुकथाओं पर लिखी गई अपनी डायरी प्रस्तुत करते हुए कहा कि --सार्थक लघुकथाएं एक दृष्टि में पढ़े जाने वाली नहीं होती बल्कि रुक रुक कर समझने और रसास्वादन लेने वाली होती है l कुछ ऐसी ही लघुकथाओं का सृजन आजकल गोविंद भारद्वाज कर रहे हैं l

       मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित साहित्यकार गोविंद भारद्वाज  ने कहा कि-  -लघुकथा में पैनी धार होनी चाहिए। कथ्य, शैली और कसावट लिए लघुकथा होनी चाहिए। शीर्षक बड़े न हों और शीर्षक के माध्यम से लघुकथा को खोले नहीं। एक से अधिक घटनाओं पर आधारित लघुकथा से बचना चाहिए। नयी थीम पर लघुकथा लिखनी चाहिए। आधुनिक घटनाओं का समावेश लघुकथा में होना चाहिए।

         हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन की सार्थकता को रेखांकित करते हुए सपना चंद्रा ने  कहा कि - साहित्यकार और चित्रकार सिद्धेश्वर जी के नेतृत्व में भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् ने पिछले चार दशकों से नवोदित,युवा एवं प्रतिष्ठित लघुकथाकारों को जोड़ने व विधा की सर्जनात्मकता को अभिनव आयाम देने में सकारात्मक भूमिका का निर्वाह किया है, जो अभिनंदनीय व प्रशंसनीय है।"

                      अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में सुप्रसिद्ध लघुकथाकार डॉ इंदु उपाध्याय ने कहा कि- भाव, भाषा और प्रस्तुति  के  सुन्दर  समन्वय  गोविंद भारद्वाज की लघुकथाओं में देखने को मिलता है  l वस्तुत: लघुकथा विस्तृत  वर्णन  या विवरण  नहीं  है और न कोरा सन्देश  है। यह  जीवन के क्षण  विशेष की गहन  अनुभूति  का सांकेतिक  चित्रण  है। सिद्धेश्वर जी ने ठीक कहा है कि लघुकथाकारों को काल दोष से बचना चाहिएl

               उन्होंने अपने वक्तव्य को विस्तार देते हुए कहा कि--"आज हैलो लघुकथा मंच पर लघुकथा सम्मेलन का आयोजन हुआ है। इस मंच के सर्वेसर्वा श्री सिद्धेश्वर जी ने मुझे अध्यक्षता की जिम्मेदारी सौंपी। वैसे ऑनलाइन लघुकथा पाठ की शुरुआत करने का श्रेय तो इन्हें जाता है पर एकल पाठ यानि एक ही लघुकथाकार की 8 - 10 रचनाओं का पाठ हो ताकि रचनाकार का सही मूल्यांकन किया जाए,उनके द्वारा की गई यह शुरुआत  अब एक अच्छी परंपरा बनती जा रही है। आज मुख्य अतिथि गोविंद भारद्वाज का एकल पाठ हुआ। उन्होंने अपनी एक दर्ज़न ताजा तरीन लघुकथाओं का पाठ कियाl इनकी रचनाएँ काफी सराही गई हैं और पाठ्यक्रम में भी शामिल है। मैं इन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। इन्होंने अपने साझा संकलन में मेरी रचनाओं को स्थान दिया है। लघुकथा पर बस इतना कहना चाहता हूं- ' हंसी- खुशी और मानव मन की व्यथा, शब्दों से संवर कर बन जाती है लघुकथा। '"   

  हेलो फेसबुक लघु कथा सम्मेलन  में देशभर के नए पुराने लघुकथाकारों ने जबरदस्त लघुकथाओं को प्रस्तुत कर, लघु कथा के सृजनात्मक विकास का उदाहरण प्रस्तुत किया  l अपनी-अपनी लघुकथाओं को प्रस्तुत करने वालों में प्रमुख थे -- इंदु उपाध्याय,मीना कुमारी परिहार, नलिनी श्रीवास्तव, रजनी श्रीवास्तव अनंता, राज प्रिया रानी, ऋचा वर्मा, चंद्रिका व्यास,  सपना चंद्रा,सुनीता मिश्रा आदि l

          इनके अतिरिक्त इस ऑनलाइन सम्मेलन में गार्गी राय,अपूर्व कुमार, रशीद गौरी, नंद कुमार मिश्र, सुनील कुमार उपाध्याय,  संतोष मालवीय, वर्षा अग्रवाल, विनोद नायक आदि की उपस्थिति भी महत्वपूर्ण रही l अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया संस्था की सचिव ऋचा वर्मा ने l


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{ प्रस्तुति ; राज प्रिया रानी  [ उपाध्यक्ष ] एवं सिद्धेश्वर  [ अध्यक्ष ]/ भारतीय युवा साहित्यकार परिषद / पटना /  बिहार  /

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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)